शाह जहाँ के शाशन काल में धर्मान्तरण की प्रक्रिया जोरों पर थी. एक दिन शाह जहाँ ने मंत्रियों को बुला कर पूछा. ये बताओ इतना बल और छल प्रयोग करने के बाद भी मुल्क का इस्लामीकरण क्यों नहीं हो पा रहा ? मंत्री बोले तुमसे ना हो पायेगा. जब तक हिन्दू साधु संत जमात के साथ विचरण करते रहेंगे, सत्संग करते रहेंगे तब तक ना हो पायेगा. सुनते ही शाह जहाँ ने फतवा जारी कर दिया. कहा जो भी साधू संत जमात के साथ घुमते मिल जाए . कैद कर के जेल में डाल दो. पूरे भारत में हजारों साधु संत बंदी बना लिए गए.
उसी समय मलूक दास जी महाराज प्रयाग के निकट कड़ा में विराजमान थे. वनखंडी नारायण दास जी महाराज उनके पास आये. मलूक दस जी से आग्रह किया हजारों निरपराध संत बंदी है और आप तपस्या में बैठे हैं. आप जैसे सिद्ध संत कृपा नहीं करेंगे तो कौन करेगा? मलूक दास जी ने संतो के उद्धार का निश्चय किया. फतवा की ऐसी तैसी करते हुए प्रयागराज से आप दक्षिण के श्री काकुलम पहुचे. वहां संतो को बंदीगृह से मुक्त करवाया. वहां के रजा को वैष्णवी दीक्षा दी.
फिर मलूक दास जी दिल्ली आये जैसे ही मलूक दस जी दिल्ली पहुचे पूरी जमात सहित आपको बंदी बना लिया गया. सबको काराग्रह में भेज दिया गया. आप समर्थ संत थे. जैसे ही आपको काराग्रह में भेजा गया सभी संतो की बेड़ियाँ अपने आप टूट गयीं काराग्रह के ताले खुल गए. आप पूरे संत समाज के साथ मथुरा में यमुना नदी के किनारे विराजमान हो गए.
जैसे ही आप दिल्ली की सीमा से बहार आये शाह जहाँ का पूरा शरीर जलने लगा. ऐसी तैसी हो गयी नवाब की. सारे हकीम वैद्य फेल हो गए. उसी समय मलूक दास जी के जाने की सूचना मिली. शाह जहाँ सब समझ गया. तब पूछते पूछते वो मलूक दस जी के पास पंहुचा.
जैसे ही शाह जहाँ मलूक दास जी के पास पंहुचा. रोने अलग माफ़ी मांगने लगा. बोला पूरा शरीर जला जा रहा है माफ़ कर दो. मलूक दास जी ने कहा तुमने संतो को बहुत कष्ट पहुचाया है. इसलिए तुम्हारा बेटा तुम्हे भी कारागार में डालेगा और वही तुम्हारी मृत्य होगी. शाह जहाँ ने कहा बस ये जलन ठीक करो. नहीं तो हम बेटे के जेल में डालने तक बचेंगे ही नहीं.
मलूक दस जी की शर्ते
मलूक दास जी ने शाह जहाँ के सामने कुछ शर्ते रखीं.
बलपूर्वक किसी का धर्मांतरण ना कराया जाए.
गौ हत्या तत्काल बंद हो.
साधू संतो के कहीं भी आने जाने पर किसी भी प्रकार की कोई भी पाबंदी ना हो.
मरता क्या ना करता शाह जहाँ ने सब मान लिया. मलूक दस जी ने कृपा की और उसकी पीड़ा का अंत हो गया.
शाह जहाँ ने मलूक दास जी को सम्मानित किया.
मलूक दास जी को फ़कीर-ऐ-शहंशाह का खिताब दिया. साथ में 500 गावों की जागीर दी. जिससे मलूक दास की परंपरा का खूब विस्तार हुआ. आज भी मलूक पीठ श्री धाम वृन्दावन में है.
समय बीता और मलूक दास जी की वाणी सत्य हुई. औरंगजेब ने शाह जहाँ को आगरा के किले में कैद कर दिया और वही उसकी मृत्यु हो गयी.
No comments:
Post a Comment