Tuesday, October 29, 2019

श्रीहरि और तुलसी विवाह

तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन किया जाता है। इसे देवउठनी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। यह एक श्रेष्ठ मांगलिक और आध्यात्मिक पर्व है| हिन्दू मान्यता के अनुसार इस तिथि पर भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ तुलसी जी का विवाह होता है, क्योंकि इस दिन भगवान नारायण चार माह की निद्रा के बाद जागते हैं| भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय हैं| तुलसी का एक नाम वृंदा भी है| नारायण जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की सुनते हैं| इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण का पवित्र मुहूर्त माना जाता है|

श्रीहरि और तुलसी विवाह कथा

यह कथा पौराणिक काल से है| हिन्दू पुराणों के अनुसार जिसे हम तुसली नाम से जानते हैं| वे एक राक्षस कन्या थीं| जिनका नाम वृंदा था| राक्षस कुल में जन्मी वृंदा श्रीहरि विष्णु की परम भक्त थीं| वृंदा के वयस्क होते ही उनका विवाह जलंधर नामक पराक्रमी असुर से करा दिया गया| वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त होने के साथ ही एक पतिव्रता स्त्री थीं| जिसके चलते जलंधर अजेय हो गया| जलंधर को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया और उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव कन्याओं को अपने अधिकार में ले लिया| इससे क्रोधित होकर सभी देव भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना करने लगे| परंतु जलंधर का अंत करने के लिए सबसे पहले उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग करना अनिवार्य था|

भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया| जिसके कारण जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया| जब वृंदा को श्रीहरि के छल का पता चला तो, उन्होंने भगवान विष्णु से कहा हे नाथ मैंने आजीवन आपकी आराधना की, आपने मेरे साथ ऐसा कृत्य कैसे किया? इस प्रश्न का कोई उत्तर श्रीहरि के पास नहीं था| वे शांत खड़े सुनते रहें| जब वृंदा को अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि आपने मेरे साथ एक पाषाण की तरह व्यवहार किया मैं आपको शाप देती हूँ कि आप पाषाण बन जाएँ| शाप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए| सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा| देवताओं ने वृंदा से याचना की कि वे अपना शाप वापस ले लें| देवों की प्रार्थना को स्वीकार कर वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया| परन्तु भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे, अतः वृंदा के शाप को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर में प्रविष्ट किया जो शालिग्राम कहलाया|

भगवान विष्णु को शाप मुक्त करने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई| वृंदा की राख से एक पौधा निकला| जिसे श्रीहरि विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया कि तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करूँगा| मेरे शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा और कालांतर में लोग इस तिथि को तुलसी विवाह के रूप में मनाएंगे| देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया| इसी घटना के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है|

मंगलाष्टक से करें तुलसी विवाह

तुलसी विवाह हिंदू रीति-रिवाज़ों के अनुसार संपन्न किया जाता है। जिसमें मंगलाष्टक के मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है। भगवान शालीग्राम व तुलसी के विवाह की घोषणा के पश्चात मंगलाष्टक मंत्र बोले जाते हैं। मान्यता है कि इन मंत्रों से सभी शुभ शक्तियां वातावरण को शुद्ध, मंगलमय व सकारात्मक बनाती हैं।

जिस घर में बेटी नहीं उनके लिए बेहत फलदायी है तुसली विवाह

तुलसी विवाह के लिए कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी का दिन शुभ है| इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह उत्सव मनाया जाता है| जिस घर में बेटियां नहीं हैं| वे दंपत्ति तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं| विवाह आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है|

तुलसी का औषधीय एवं पौराणिक महत्व

तुलसी स्वास्थ्य के दृष्टि से बड़े ही काम की चीज हैं| चाय में तुलसी की दो पत्तियां चाय का जायका बढ़ा ही देती हैं साथ ही शरीर को ऊर्जावान और बिमारियों से दूर रखने में भी सहायता करती हैं| इन्हीं गुणों के कारण आर्युवेदिक दवाओं में तुलसी का उपयोग किया जाता है| तुलसी का केवल स्वास्थ्य के लिहाज से नहीं बल्कि धार्मिक रुप से भी बहुत महत्व है| एक और तुलसी जहां भगवान विष्णु की प्रिया हैं तो वहीं भगवान श्री गणेश से उनका छत्तीस का आंकड़ा है| श्री गणेश की पूजा में किसी भी रूप में तुसली का उपयोग वर्जित है|

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