मां लक्ष्मी के पूजन के पर्व दीपावली से दो दिन पहले पड़ने वाला धनतेरस का त्योहार देव वैद्य धनवंतरि और लक्ष्मी जी के खजांची माने जाने वाले कुबेर को याद करने का दिन है। दिवाली से पहले कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाये जाने वाले 'धनतेरस' को 'धनवंतरि त्रयोदशी' भी कहा जाता है और इस दिन सोने चांदी की कोई चीज खरीदने को अत्यंत शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी के साथ धनवंतरि और कुबेर की भी पूजा की जानी चाहिए क्योंकि कुबेर जहां धन का जोड़−घटाव रखने वाले हैं वहीं धनवंतरि ब्रह्मांड के सबसे बड़े वैद्य हैं।
धनतेरस के दिन पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान धनतेरस पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती हैं। वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ ही चल रही होती है।
मान्यता है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान, अमृत का कलश लेकर धनवंतरी प्रकट हुए थे. इस कारण इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा I
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, धनवंतरी के प्रकट होने के ठीक दो दिन बाद मां लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं. यही कारण है कि हर बार दिवाली से दो दिन पहले ही धनतेरस मनाया जाता हैIइस दिन स्वास्थ्य रक्षा के लिए धनवंतरी देव की उपासना की जाती है. इस दिन को कुबेर का दिन भी माना जाता है और धन संपन्नता के लिए कुबेर की पूजा की जाती हैI
धन्वंतरि आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं। इस दिन गणेश-लक्ष्मी को घर लाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन कोई किसी को उधार नहीं देता है। इसलिए सभी वस्तुएं नगद में खरीदकर लाई जाती हैं। इस दिन लक्ष्मी और कुबेर की पूजा के साथ-साथ यमराज की भी पूजा की जाती है।
पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती, अपितु रात होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है। धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्व है। शास्त्रों में इस बारे में कहा गया है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर संभव न हो तो कोई बर्तन खरीदें। इसका यह कारण माना जाता है कि चांदी चंद्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है, वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है।
घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से प्रारंभ हो जाती है। इस दिन घरों को स्वच्छ कर, रंगोली बनाकर सांझ के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है। इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। धनतेरस को चांदी के बर्तन खरीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशालाएं, कुआं, बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए।
इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्यद्वार पर रखा जाता है। इस दीप को यमदीवा अर्थात यमराज का दीपक कहा जाता है। रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रुई की बत्ती बनाकर चार बत्तियां जलाती हैं। दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए। जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं।
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