इस बात का जिक्र करना जरूरी नहीं कि कोलकाता में दुर्गा पूजा कितने धूम-धाम से मनाई जाती है। इस दौरान कोलकता के नजारे ही बदल जाते हैं। जगह-जगह दुर्गा मां के पंडाल सजे होते हैं तो दूसरी तरफ मेले लगे होते हैं। भक्ति, नाच-गाने और खाने-पीने के साथ ही कोलकाता में 10 दिन धूम-धाम से दुर्गा पूजा मनाई जाती है।
दुर्गा पूजा खासतौर से बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, झारखंड और बिहार में धूमधाम से मनाई जाती है. इन राज्यों में शरद नवरात्रि में षष्ठी से लेकर दशमी तक दुर्गा उत्सव मनाया जाता है. यहां दुर्गा उत्सव को अकालबोधन , शदियो पूजो, शरदोत्सब, महा पूजो , मायेर पूजो, पूजा या फिर पूजो भी कहा जाता है. दुर्गा उत्सव के दौरान भव्य पंडाल बनाकर उनमें मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इस दौरान मां की आराधना के अलावा अनेक रंगारंग और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
दुर्गा उत्सव क्यों मनाया जाता है?
दुर्गा पूजा मनाए जाने के अलग-अलग कारण हैं. मान्यता है कि देवी दुर्गा ने महिशासुर नाम के राक्षस का वध किया था. बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में नवदुर्गा की पूजा की जाती है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि साल के इन्हीं नौ महीनों में देवी मां अपने मायके आती हैं. ऐसे में इन नौ दिनों को दुर्गा उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
कैसे मनाया जाता है दुर्गा उत्सव का त्योहार?
दुर्गा पूजा की शुरुआत नवरात्रि से एक दिन पहले महालया से होती है. महलाया अमावस्या की सुबह सबसे पहले पितरों का तर्पण कर उन्हें विदाई दी जाती है. मान्यता है कि महालया के दिन शाम को मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी लोक आती हैं और पूरे नौ दिनों तक यहां रहकर धरतीवासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं. महालया के बाद वाले सप्ताह को देबी पॉक्ष (Debi-Poksha) कहा जाता है.
षष्ठी के दिन पंडालों में मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक, भगवान गणेश और महिषासुर की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता है. षष्ठी के दिन घर की महिलाएं खासकर मांएं अपने बच्चों की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं. सप्तमी के दिन देवी पंडालों की रौनक देखते ही बनती है. इस दिन मां दुर्गा को उनका पसंदीदा भोग लगाया जाता है जिसमें खिचड़ी, पापड़, सब्जियां, बैंगन भाजा और रसगुल्ला शामिल है. अष्टमी के दिन भी देवी मां की आराधना की जाती है और उन्हें कई तरह के पकवान चढ़ाए जाते हैं. नवमी की रात मायके में दुर्गा मां की आखिरी रात होती है.
इसके बाद दशमी यानी कि दशहरे के दिन सुबह सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां को विसर्जन कर विदाई दी जाती है. दुर्गा उत्सव के दौरान पंडाल परिसर में ही मंच बनाया जाता है जहां रंगारंग कार्यक्रम होत है. अपनी प्रतिभा दिखाने का यह अच्छा मौका होता है. इस दौरान खासकर बच्चों के लिए कई तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है.
दुर्गा पूजा की खास बातें
पंडाल: दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल आकर्षण का केंद्र रहते हैं. न सिर्फ बंगाल में बल्कि भारत समेत दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में देवी मां के भव्य पंडाल स्थापित किए जाते हैं. लोग अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ एक पंडाल से दूसरे पंडाल (Pandal Hopping) जाते हैं. षष्ठी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा पंडालों में स्थापित की जाती है, जबकि सप्तमी को मां के पट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं. इस दौरान एक से बढ़कर एक डिजाइन के पंडाल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. पंडालों के आसपास मेले भी लगते हैं, जिनमें खाने-पीने के ढेर सारे स्टॉल किसी के मुंह में भी पानी ला सकते हैं.
भोग: मान्यता के अनुसार मायके आईं मां दुर्गा को पूजा के दौरान कई तरह का भोग लगाया जाता है. पंडालों के अलावा लोग घरों में खजूर-गुड़ की खीर, मालपुआ और तरह-तरह की मिठाइयां बनाते हैं.
धुनुची डांस: दुर्गा पूजा में धुनुची डांस न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. एक खास तरह के बर्तन को धुनुची कहा जाता है, जिसमें सूखे नारियल के छिलकों को जलाकर दुर्गा मां की आरती की जाती है. आरती के दौरान धुनुची के साथ भक्त झूमकर नाचते हैं और कई तरह के करतब भी करते हैं.
ढाक: जब पंडालों में दुर्गा मां की आरती की जाती है तब ढाक बजाया जाता है. ढाक एक तरह का ढोल है जिसकी खास ध्वनि पूरे माहौल को मां की भक्ति के रंग में रंग देती है.
सिंदूर खेला बंगाल, असम और त्रिपुरा के लोग दुर्गा पूजा के दौरान खास तौर से लाल पाड़ की साड़ी पहनते हैं. लाल पाड़ की साड़ी एक खास तरह की सफेद साड़ी है जिसका बॉर्डर लाल रंग का होता है.
सिंदूर खेला: नवरात्रि के 10वें दि यानी कि विजयदशमी को पंडालों में महिलाएं मां दुर्गा की पूजा करने के बाद उन्हें सिंदूर चढ़ाती हैं. इस दौरान मां दुर्गा को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है. इसके बाद महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. इस परंपरा को सिंदूर खेला कहा जाता है. मान्यता है कि मां दुर्गा की मांग भरकर उन्हें मायके से ससुराल विदा किया जाना चाहिए.
विसर्जन: सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां की प्रतिमा को विजसर्जन के लिए ले जाया जाता है. इस दौरान लोग नाचते-गाते हुए मां की प्रतिमा को पानी में विसर्जित कर देते हैं.
दुर्गा पूजा का उत्साह कोलकाता के लोगों में तभी से शुरू हो जाता है जब महीने भर पहले भूमि पूजन होता है। इसके बाद शुरू होता कोलकता की गली-गली में दुर्गा मां के पंडालों को सजाने की तैयारी। दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में भले ही गिने चुने दुर्गा पंडाल होते होंगे मगर कोलकाता में मां दुर्गा के हजारों पंडाल सजते हैं। इस दौरान कोलकाता बहुत कलरफुल हो जाता है। अगर आप कोलकाता घूमने आना चाहती हैं तो यह वक्त सबसे अच्छा है।’
कब कराएं रिजर्वेशन
दुर्गा पूजा के दौरान कोलकाता आना है तो आपको 4 महीने पहले से रिजर्वेशन करा लेना चाहिए। क्योंकि इस दौरान कोलकाता आने वाली फ्लाइट्स बहुत महंगी हो जाती हैं और ट्रेन में भी आसानी से रिजर्वेशन नहीं मिलता। वर्षा बातती हैं, ‘यह समय कोलकाता में छुट्टियों का समय होता है। ज्यादतर लोग इस दौरान छुट्टियां मनाते हैं। इसलिए लोगों का आना जाना भी लगा रहता है। अगर आप कोलकाता आना चाहती हैं तो आपको 4 महीने पहले ही रिजर्वेशन करा लेना चाहिए।’
कोलकाता में कौन से दुर्गा पंडाल हैं फेमस
कोलकाता में बागबाजार पंडाल सबसे पुराना है। यहां 100 सालों से दुर्गा पूजा का आयोजन हो रहा है। यहां दुर्गा माता की बेहद पारंपरिक अंदाज में पूजा की जाती है। अगर आप कोलकाता आ रही हैं तो इस पंडाल में एक बार जरूर आएं। इसके अलावा कॉलेज स्क्वायर में भी मां दुर्गा का पंडाल सजता है। यहां पंडाल में मां दुर्गा की भव्य मूर्ति लगाई जाती हैं और इसकी सेटिंग भी अलग अंदाज में होती है। यहां प्रतिमा देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां की सबसे अच्छी बात यह है कि पंडाल के आगे झील है और इस झील में मां की प्रतिमा की छवि भी दिखाई देती हैं। इसके अलावा यहां का सुरुचि संघ भी मां दुर्गा का बहुत खूबसूरत पंडाल सजाता है। यहां भारत के सभी राज्यों के विभिन्न्पहलुओं को दिखाया जाता है।
पंचमी से शुरू होता है उत्सव
कोलकाता में मां दुर्गा के पंडाल तो नवरात्री के पहले दिन से ही सज साजते हैं मगर असल उत्सव पंचमी से शुरू होता है। पंचमी के दिन तक सभी पंडालों में मां दुर्गा के फेस को सफेद कपड़े से कवर करके रखा जाता है। मगर, पंचमी के दिन हर पंडाल में मां का चेहरा खोल दिया जाता है। अगर आप केवल 3-4 दिन के लिए कोलकाता जा रही हैं तो आपको पंचमी के बाद ही जाना चाहिए।
जरूर देखें सिंदूर खेला
नवरात्री के आखिरी दिन मां दुर्गा की पूजा के बाद शादीशुदा महिलाएं एक दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं। इस प्रक्रिया को सिंदूर खेला कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा अपने मायके से विदा होकर अपने ससुराल लौटती हैं। इस दौरान मां की मांग में सिंदूर भर कर महिलाएं उल्लू की ध्वनी निकालती हैं और मां को विदा करती हैं। सिंदूर खेला का उत्सव नवरात्री के 10वें दिन खेला जाता है।
नोट : तो अगर आपने अब तक कोलकाता नहीं देखा तो आप भी नवरात्री के दौरान यहां की एक ट्रिप प्लान कर सकती है। ध्यान रखें अपना रिजर्वेशन और होटल की बुकिंग पहले से करा लें। क्योंकि इस दौरान कोलकाता पहुंचना और होटलों में रूम खाली मिलना दोनों ही मुश्किल काम हैं।
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