- पहला दिन (नहाय-खाय) 31 अक्टूबर, गुरुवार
छठ पर्व बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय-खाय के साथ होती है। इस दिन व्रत रखने वाले स्नान कर और नये कपड़े पहनकर लौकी आदि से तैयार शाकाहारी भोजन लेते हैं।
- दूसरा दिन (खरना) एक नवंबर शुक्रवार
अगले दिन यानी पंचमी तिथि को व्रत रखा जाता है। इसे खरना (खाली पेट) कहा जाता है। इस दिन निर्जला उपवास रखा जाता है। शाम को चावल और गुड़ से खीर खाया जाता है। चावल का पिठ्ठा और घी लगी रोटी भी खाई प्रसाद के रूप में परिवार में वितरीत की जाती है।
-तीसरा दिन (सूर्य षष्ठी) दो नवंबर शनिवार
सूर्य षष्ठी पर सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन बांस की टोकरी में प्रसाद और फल सजाए जाते हैं। इस टोकरी सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की अर्घ्य देकर आराधना की जाती है।
चौथा दिन (समापन) तीन नवंबर रविवार
कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उगते सूर्य भगवान की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है। भगवान भास्कर से परिवार के मंगलकामना के लिए आशीवार्द मांगकर घाट पर प्रसाद बांट कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।
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