एक बार राजा जनक घूमते घूमते उन रूहों के पास पहुँच जाते है जिन्हें बहुत ज्यादा दर्दनाक यातनाएं दी जा रही थी।
राजा जनक उनके उपर होते हुये जुल्म से से दुखी होकर धर्मराज से बोले," महाराज ! क्या इनके कर्मों का कोई समाधान हो सकता है?"
धर्मराज बोले: हाँ हो सकता है यदि कोई व्यक्ति अपने 2.30 घंटे का भजन सिमरन इन रूहों को दे दे तो तो इनके सभी कर्मो का भुगतान हो सकता है। यह सुनकर राजा जनक बोले, मैं अपने 2.30 घंटे के भजन सिमरन का फल इन रूहों को देने को तैयार हूं।
यह सुनकर धर्मराज ने तराजू मंगवाया और राजा जनक से बोले एक तरफ मैं रूहों को रखता हूं और दूसरी और आपके 2.30 घंटे के भजन सिमरन को रखता हूं।
जैसे ही तराजू के एक तरफ एक पल किया हुआ भजन सिमरन रखा और दूसरी तरफ रूहों को रखना प्ररम्भ किया तो सारी की सारी रूहें एक ही बार में अपने पाप कर्मों से मुक्त हो गयी।
इसलिए कलयुग में मालिक ने 2.30 घंटे के भजन-सिमरन का बहुत ही सरल समाधान बताया है। जो हमें नित-प्रति दिन बे नागा करना चाहिए। जिससे हमारे दुखों का समाधान हो सके।
हम न बोलें फिर भी वह सुन लेता है, इसीलिये उसका नाम परमात्मा है।
वह न बोले फिर भी हमें सुनायी दे,उसी का नाम श्रद्धा है।
मालिक को पाने के लिए ( सतगुरु ) जरुरी है...
बुरे कर्म मिटाने के लिए ( सेवा ) जरूरी है...
आत्मा की शान्ति के लिए ( सिमरन ) जरूरी है...
चौरासी से मुक्ति के लिए ( नाम ) जरूरी है...
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