Wednesday, October 30, 2019

शनि के बुरे प्रभाव से बचा सकते हैं ये उपाय

कुंडली में जब शनि अशुभ स्थिति में हो तो समझ लीजिए की बुरा वक्त शुरू हो गया है। शनि के प्रभाव में आए

जातकों का शनि फौरन न्याय करता है। ऐसे जातकों के सभी अच्छे-बुरे कर्मों का फैसला शनि फौरन करता है और उन्हें उचित फल देता है। अनिष्ट शनि ग्रह के प्रभाव से बचने के लिए कुछ खास उपाय कर इसके प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

शनि की बुरी दशा को खत्म करने के लिए आप चावल, तिल, उड़द, लोहा, तेल, काले वस्त्र, गुड, खाना, रोटी, तिल लड्डू, काला चना, लोहे का पात्र या उपकरण, आदि का दान कर सकते हैं. यह दान किसी गरीब या जरूरतमंद को ही करना लाभदायक होता है I

शनि दशा सही करने के लिए गरीबों की सेवा करें. गाय और कुत्ते को रोटी खिलाएं. चींटी को आंटा और शक्कर खिलने से भी लाभ मिलता है I

संध्या के समय हनुमान चालीसा का पाठ करें और पवनपुत्र को बेसन के लड्डू का भोग अवश्य लगाएं। इसके साथ ही काली हाय की सेवा करें और हर शनिवार को गौ माता के मस्तर पर रोली लगाकर सींगों में कलावा बांध कर धूप करें। इसके बाद परिक्रमा करके गाय को बूंदी के चार लड्डू खिलाएं I

भगवान हनुमान की पूजा करें। सूर्यास्त से पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इस दिन बंदरों को केला, गुड़ और काले चने खिलाए। ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होंगे और जातक इसके बुरे प्रभाव से काफी हद तक बच सकेंगे।

शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या को दूर करने के लिए भोजन से पहले परोसी हुई थाली में से सभी चीजें थोड़ी-थोड़ी अलग निकाल दें और इसे कौओं को खिलाएं।

शनि के बुरे प्रभाव से बचने के लिए राई का तेल या तिल का तेल दान करें। शनि के खराब असर से जूझ रहे हैं तो सुरमें की जली लेकर जमीन में गाड़ दें। इतना ही नहीं रात को सोते समय दूघ न पिएं।

सप्तम स्थान में शनि हो तो मदिरा पान न करें अन्यथा आर्थिक और शारीरिक कमजोरी झेलनी पड़ेगी। इसके असर से बचने के लिए किसी जरूरतमंद को शनिवार वाले दिन काले तिल, तेल और काले कपड़े का दान करें।

Chhath Puja 2019 : नहाय-खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत 31 अक्टूबर 2019, गुरुवार से




- पहला दिन (नहाय-खाय) 31 अक्टूबर, गुरुवार

छठ पर्व बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय-खाय के साथ होती है। इस दिन व्रत रखने वाले स्नान कर और नये कपड़े पहनकर लौकी आदि से तैयार शाकाहारी भोजन लेते हैं।


- दूसरा दिन (खरना) एक नवंबर शुक्रवार

अगले दिन यानी पंचमी तिथि को व्रत रखा जाता है। इसे खरना (खाली पेट) कहा जाता है। इस दिन निर्जला उपवास रखा जाता है। शाम को चावल और गुड़ से खीर खाया जाता है। चावल का पिठ्ठा और घी लगी रोटी भी खाई प्रसाद के रूप में परिवार में वितरीत की जाती है।

-तीसरा दिन (सूर्य षष्ठी) दो नवंबर शनिवार

सूर्य षष्ठी पर सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन बांस की टोकरी में प्रसाद और फल सजाए जाते हैं। इस टोकरी सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की अर्घ्य देकर आराधना की जाती है।

चौथा दिन (समापन) तीन नवंबर रविवार

कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उगते सूर्य भगवान की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है। भगवान भास्कर से परिवार के मंगलकामना के लिए आशीवार्द मांगकर घाट पर प्रसाद बांट कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।

Tuesday, October 29, 2019

श्रीहरि और तुलसी विवाह

तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन किया जाता है। इसे देवउठनी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। यह एक श्रेष्ठ मांगलिक और आध्यात्मिक पर्व है| हिन्दू मान्यता के अनुसार इस तिथि पर भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ तुलसी जी का विवाह होता है, क्योंकि इस दिन भगवान नारायण चार माह की निद्रा के बाद जागते हैं| भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय हैं| तुलसी का एक नाम वृंदा भी है| नारायण जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की सुनते हैं| इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण का पवित्र मुहूर्त माना जाता है|

श्रीहरि और तुलसी विवाह कथा

यह कथा पौराणिक काल से है| हिन्दू पुराणों के अनुसार जिसे हम तुसली नाम से जानते हैं| वे एक राक्षस कन्या थीं| जिनका नाम वृंदा था| राक्षस कुल में जन्मी वृंदा श्रीहरि विष्णु की परम भक्त थीं| वृंदा के वयस्क होते ही उनका विवाह जलंधर नामक पराक्रमी असुर से करा दिया गया| वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त होने के साथ ही एक पतिव्रता स्त्री थीं| जिसके चलते जलंधर अजेय हो गया| जलंधर को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया और उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव कन्याओं को अपने अधिकार में ले लिया| इससे क्रोधित होकर सभी देव भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना करने लगे| परंतु जलंधर का अंत करने के लिए सबसे पहले उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग करना अनिवार्य था|

भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया| जिसके कारण जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया| जब वृंदा को श्रीहरि के छल का पता चला तो, उन्होंने भगवान विष्णु से कहा हे नाथ मैंने आजीवन आपकी आराधना की, आपने मेरे साथ ऐसा कृत्य कैसे किया? इस प्रश्न का कोई उत्तर श्रीहरि के पास नहीं था| वे शांत खड़े सुनते रहें| जब वृंदा को अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि आपने मेरे साथ एक पाषाण की तरह व्यवहार किया मैं आपको शाप देती हूँ कि आप पाषाण बन जाएँ| शाप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए| सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा| देवताओं ने वृंदा से याचना की कि वे अपना शाप वापस ले लें| देवों की प्रार्थना को स्वीकार कर वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया| परन्तु भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे, अतः वृंदा के शाप को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर में प्रविष्ट किया जो शालिग्राम कहलाया|

भगवान विष्णु को शाप मुक्त करने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई| वृंदा की राख से एक पौधा निकला| जिसे श्रीहरि विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया कि तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करूँगा| मेरे शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा और कालांतर में लोग इस तिथि को तुलसी विवाह के रूप में मनाएंगे| देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया| इसी घटना के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है|

मंगलाष्टक से करें तुलसी विवाह

तुलसी विवाह हिंदू रीति-रिवाज़ों के अनुसार संपन्न किया जाता है। जिसमें मंगलाष्टक के मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है। भगवान शालीग्राम व तुलसी के विवाह की घोषणा के पश्चात मंगलाष्टक मंत्र बोले जाते हैं। मान्यता है कि इन मंत्रों से सभी शुभ शक्तियां वातावरण को शुद्ध, मंगलमय व सकारात्मक बनाती हैं।

जिस घर में बेटी नहीं उनके लिए बेहत फलदायी है तुसली विवाह

तुलसी विवाह के लिए कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी का दिन शुभ है| इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह उत्सव मनाया जाता है| जिस घर में बेटियां नहीं हैं| वे दंपत्ति तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं| विवाह आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है|

तुलसी का औषधीय एवं पौराणिक महत्व

तुलसी स्वास्थ्य के दृष्टि से बड़े ही काम की चीज हैं| चाय में तुलसी की दो पत्तियां चाय का जायका बढ़ा ही देती हैं साथ ही शरीर को ऊर्जावान और बिमारियों से दूर रखने में भी सहायता करती हैं| इन्हीं गुणों के कारण आर्युवेदिक दवाओं में तुलसी का उपयोग किया जाता है| तुलसी का केवल स्वास्थ्य के लिहाज से नहीं बल्कि धार्मिक रुप से भी बहुत महत्व है| एक और तुलसी जहां भगवान विष्णु की प्रिया हैं तो वहीं भगवान श्री गणेश से उनका छत्तीस का आंकड़ा है| श्री गणेश की पूजा में किसी भी रूप में तुसली का उपयोग वर्जित है|

देवउठनी एकादशी पर जग जाएंगे भगवान श्रीविष्णु

देवउठनी एकादशी, एकादशी, तुसली विवाह, कार्तिक एकादशीकार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी दीपावली के बाद आती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश तथा अन्य सभी प्रकार के मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। एक पौराणिक कथा में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीविष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को लम्बे युद्ध के बाद समाप्त किया था और थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे और चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देवोत्थनी एकादशी कहलाया। इस दिन भगवान विष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है।

देव उठनी एकादशी का महत्व

भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।


देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि

प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-

● इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
● घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।
● एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई,बेर,सिंघाड़े,ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए।
● इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।
● रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।
● इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास

तुलसी विवाह का आयोजन

Image result for तुसली विवाह, तुसली देवउठनी एकादशीदेवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।

भगवान श्रीविष्णु को तुलसी अर्पित करें

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि स्वर्ग में भगवान श्रीविष्णु के साथ लक्ष्मीजी का जो महत्व है वही धरती पर तुलसी का है। इसी के चलते भगवान को जो व्यक्ति तुलसी अर्पित करता है उससे वह अति प्रसन्न होते हैं। बद्रीनाथ धाम में तो यात्रा मौसम के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा तुलसी की करीब दस हजार मालाएं रोज चढ़ाई जाती हैं। इस दिन श्रद्धालुओं को चाहिए कि जिस गमले में तुलसी का पौधा लगा है उसे गेरु आदि से सजाकर उसके चारों ओर मंडप बनाकर उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक चुनरी को ओढ़ा दें। इसके अलावा गमले को भी साड़ी में लपेट दें और उसका श्रृंगार करें। इसके बाद सिद्धिविनायक श्रीगणेश सहित सभी देवी−देवताओं और श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करें। एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें और भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं। इसके बाद आरती करें।

Sunday, October 27, 2019

छठ माई की पूजा छठ पूजा (Chhath Puja) 2019



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छठ पूजा
नवरात्र, दूर्गा पूजा की तरह छठ पूजा भी हिंदूओं का प्रमुख त्यौहार है। क्षेत्रीय स्तर पर बिहार में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देवता की बहन हैं। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं।

कब मनाया जाता है छठ पूजा का पर्व

सूर्य देव की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी इन दो तिथियों को यह पर्व मनाया जाता है। हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाये जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है। कार्तिक छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।

क्यों करते हैं छठ पूजा

छठ पूजा करने या उपवास रखने के सबके अपने अपने कारण होते हैं लेकिन मुख्य रूप से छठ पूजा सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिये की जाती है। सूर्य देव की कृपा से सेहत अच्छी रहती है। सूर्य देव की कृपा से घर में धन धान्य के भंडार भरे रहते हैं। छठ माई संतान प्रदान करती हैं। सूर्य सी श्रेष्ठ संतान के लिये भी यह उपवास रखा जाता है। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये भी इस व्रत को रखा जाता है।

कौन हैं देवी षष्ठी और कैसे हुई उत्पत्ति

छठ देवी को सूर्य देव की बहन बताया जाता है। लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं यही कारण है कि मुझे षष्ठी कहा जाता है। देवी कहती हैं यदि आप संतान प्राप्ति की कामना करते हैं तो मेरी विधिवत पूजा करें। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को करने का विधान बताया गया है।

छठ पूजा, Chhath Puja 2019, छठ पूजा 2019पौराणिक ग्रंथों में इस रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या आने के पश्चात माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है, महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र की प्राप्ति से भी इसे जोड़ा जाता है।

सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था वह भी सूर्यदेव के उपासक थे। वे घंटों जल में रहकर सूर्य की पूजा करते। मान्यता है कि कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा हमेशा बनी रही। इसी कारण लोग सूर्यदेव की कृपा पाने के लिये भी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करते हैं।

छठ पूजा के चार दिन

छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक चलता है –
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय – छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना – कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाया जाता है। नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी खाई प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है।

षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है। चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं। प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है। 


अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।
छठ पूजा पर्व तिथि व मुहूर्त 2019

छठ पूजा 2019

2 नवंबर 2019

छठ पूजा के दिन सूर्योदय – 06:33

छठ पूजा के दिन सूर्यास्त – 17:35

षष्ठी तिथि आरंभ – 00:51 (2 नवंबर 2019)

षष्ठी तिथि समाप्त – 01:31 (3 नवंबर 2019)

Govardhan Puja or Annakoot 2019: आज है गोवर्द्धन पूजा,

गोवर्धन पूजा पर्व को अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। दीपावली के अगले दिन मनाये जाने वाले इस त्योहार की विशेष छटा ब्रज में देखने को मिलती है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा था तो गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह पर्व अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा.

गोवर्द्धन पूजा या अन्‍नकूट कब है
गोवर्धन पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है. अन्नकूट (Anna Koot) पूजा दीवाली (Diwali) के एक दिन बाद यानी ठीक दीवाली के अगले दिन मनाई जाती है. इस बार अन्नकूट पूजा 28 अक्‍टूबर को है.

अन्नकूट क्‍या है?
अन्नकूट पर्व पर तरह-तरह के पकवानों से भगवान की पूजा का विधान है. अन्नकूट यानी कि अन्न का समूह. श्रद्धालु तरह-तरह की मिठाइयों और पकवानों से भगवान कृष्‍ण को भोग लगाते हैं. मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से अन्नकूट और गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई. एक और मान्यता है कि एक बार इंद्र अभिमान में चूर हो गए और सात दिन तक लगातार बारिश करने लगे. तब भगवान श्री कृष्ण ने उनके अहंकार को तोड़ने और जनता की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को ही अंगुली पर उठा लिया था. बाद में इंद्र को क्षमायाचना करनी पड़ी थी. कहा जाता है कि उस दिन के बाद से गोवर्धन की पूजा शुरू हुई. जमीन पर गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर पूजा की जाती है.
भगवान को लगते हैं तरह-तरह के व्यंजनों के भोग

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाये जाने वाले इस पर्व के दिन बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सवों को भी मनाने की परम्परा है। इस दिन भगवान को तरह−तरह के व्यंजनों के भोग लगाये जाते हैं और उनके प्रसाद का लंगर लगाया जाता है। इस दिन गाय−बैल आदि पशुओं को स्नान करा कर फूलमाला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली चावल लगाकर पूजा करते हैं तथा परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन गाय की पूजा करने से सभी पाप उतर जाते हैं और मोक्ष प्राप्त होता है।

पर्व से जुड़ी कथा

एक बार भगवान श्रीकृष्ण गोप−गोपियों के साथ गायें चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि हजारों गोपियां गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच गाकर उत्सव मना रही हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर गोपियों ने बताया कि मेघों के स्वामी इन्द्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है। श्रीकृष्ण बोले− यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएं, तब तो इस उत्सव की कुछ कीमत है। गोपियां बोलीं− तुम्हें इन्द्र की निन्दा नहीं करनी चाहिए। इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है।

श्रीकृष्ण बोले− वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है, हमें इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। सभी गोप−ग्वाल अपने−अपने घरों से पकवान ला−लाकर श्रीकृष्ण की बताई विधि से गोवर्धन की पूजा करने लगे। इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष मेरी पूजा न होकर गोवर्धन की पूजा की जा रही है तो वह कुपित हुए और मेघों को आज्ञा दी कि गोकुल में जाकर इतना पानी बरसायें कि वहां पर प्रलय का दृश्य उत्पन्न हो जाये।

मेघ इन्द्र की आज्ञा से मूसलाधार वर्षा करने लगे। श्रीकृष्ण ने सब गोप−गोपियों को आदेश दिया कि सब अपने−अपने गायों बछड़ों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंच जाएं। गोवर्धन ही मेघों की रक्षा करेंगे। सब गोप−गोपियां अपने−अपने गाय−बछड़ों, बैलों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंच गये। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर धारण कर छाता सा तान दिया। सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं गिरी।

ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्रीकृष्ण ने जन्म ले लिया है। उनसे तुम्हारा बैर लेना उचित नहीं है। श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा−याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी यह यह गोवर्धन पर्व के रूप में प्रचलित हो गया।

Saturday, October 26, 2019

मां लक्ष्‍मी की आरती


ॐ जय लक्ष्मी माता,
ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥
उमा, रमा, ब्रम्हाणी,
तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
दुर्गा रूप निरंजनि,
सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
तुम ही पाताल निवासनी,
तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,
भव निधि की त्राता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
जिस घर तुम रहती हो,
ताँहि में हैं सद्‍गुण आता ।
सब सभंव हो जाता,
मन नहीं घबराता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
तुम बिन यज्ञ ना होता,
वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव,
सब तुमसे आता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर,
क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
महालक्ष्मी जी की आरती,
जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता,
पाप उतर जाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥

टिप्पणियां ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥

दीवाली पूजन की विधि


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दीवाली (Diwali) हिन्‍दुओं के सबसे प्रमुख और बड़े त्‍योहारों में से एक है. यह खुशहाली, समृद्धि, शांति और सकारात्‍मक ऊर्जा का द्योतक है. रोशनी का यह त्‍योहार बताता है कि चाहे कुछ भी हो जाए असत्‍य पर सत्‍य की जीत अवश्‍य होती है. मान्यता है कि रावण की लंका का दहन कर 14 वर्ष का वनवास काटकर भगवान राम अपने घर लौटे थे. इसी खुशी में पूरी प्रजा ने नगर में अपने राम का स्वागत घी के दीपक जलाकर किया. राम के भक्तों ने पूरी अयोध्या को दीयों की रोशनी से भर दिया था. दीवाली के दिन को मां लक्ष्मी (Maa Lakshmi) के जन्म दिवस के तौर पर मनाया जाता है. वहीं, यह भी माना जाता है कि दीवाली की रात को ही मां लक्ष्मी में भगवान विष्णु से शादी की थी. इस दिन श्री गणेश, मां लक्ष्‍मी और मां सरस्‍वती की पूजा (Diwali Puja) का विधान है. मान्‍यता है कि विधि-विधान से पूजा करने पर दरिद्रता दूर होती है और सुख-समृद्धि तथा बुद्धि का आगमन होता है. हिन्‍दुओं के अलावा सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोग भी दीवाली धूमधाम से मनाते हैं. 

 


दीवाली पूजन की सामग्री 

लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, लक्ष्मी जी को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, लाल कपड़ा, सप्तधान्य, गुलाल, लौंग, अगरबत्ती, हल्दी, अर्घ्य पात्र, फूलों की माला और खुले फूल, सुपारी, सिंदूर, इत्र, इलायची, कपूर, केसर, सीताफल, कमलगट्टे, कुशा, कुंकु, साबुत धनिया (जिसे धनतेरस पर खरीदा हो), खील-बताशे, गंगाजल, देसी घी, चंदन, चांदी का सिक्का, अक्षत, दही, दीपक, दूध, लौंग लगा पान, दूब घास, गेहूं, धूप बत्ती, मिठाई, पंचमेवा, पंच पल्लव (गूलर, गांव, आम, पाकर और बड़ के पत्ते), तेल, मौली, रूई, पांच यज्ञोपवीत (धागा), रोली, लाल कपड़ा, चीनी, शहद, नारियल और हल्दी की गांठ.

लक्ष्‍मी पूजन की विधि

Image result for दीवाली पूजन की सामग्री धनतेरस के दिन माता लक्ष्‍मी और भगवान गणेश की नई मूर्ति खरीदकर दीपावली की रात उसका पूजन किया जाता है. दीवाली के दिन इस तरह करें महालक्ष्‍मी की पूजा:
मूर्ति स्‍थापना: सबसे पहले एक चौकरी पर लाल वस्‍त्र बिछाकर उस पर मां लक्ष्‍मी और भगवान गणेश की प्रतिमा रखें. अब जलपात्र या लोटे से चौकी के ऊपर पानी छिड़कते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें.

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्‍थां गतोपि वा । य: स्‍मरेत् पुण्‍डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि: ।। 
धरती मां को प्रणाम: इसके बाद अपने ऊपर और अपने पूजा के आसन पर जल छिड़कते हुए दिए गए मंत्र का उच्‍चारण करें. 

पृथ्विति मंत्रस्‍य मेरुपृष्‍ठ: ग ऋषि: सुतलं छन्‍द: कूर्मोदेवता आसने विनियोग: ।।  
ॐ पृथ्‍वी त्‍वया धृता लोका देवि त्‍वं विष्‍णुना धृता । 
त्‍वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् नम:  ।।
पृथ्वियै नम: आधारशक्‍तये नम: ।।
आचमन: अब इन मंत्रों का उच्‍चारण करते हुए गंगाजल से आचमन करें.

ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: ॐ माधवाय नम: 
ध्‍यान: अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी का ध्‍यान करें.

या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटी पद्म-पत्रायताक्षी, 
गम्भीरार्तव-नाभि: स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया ।
या लक्ष्मीर्दिव्य-रूपैर्मणि-गण-खचितैः स्‍वापिता हेम-कुम्भैः,
सा नित्यं पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-मांगल्य-युक्ता ।।
आवाह्न: अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी का आवाह्न करें.

आगच्‍छ देव-देवेशि! तेजोमय‍ि महा-लक्ष्‍मी !
क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वन्दिते !
।। श्रीलक्ष्‍मी देवीं आवाह्यामि ।।
पुष्‍पांजलि आसन: अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए हाथ में पांच पुष्‍प अंजलि में लेकर अर्पित करें.

नाना रत्‍न समायुक्‍तं, कार्त स्‍वर विभूषितम् ।
आसनं देव-देवेश ! प्रीत्‍यर्थं प्रति-गह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै आसनार्थे पंच-पुष्‍पाणि समर्पयामि ।। 
स्‍वागत: अब श्रीलक्ष्‍मी देवी ! स्‍वागतम् मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी का स्‍वागत करें.
पाद्य: अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी के चरण धोने के लिए जल अर्पित करें.

पाद्यं गृहाण देवेशि, सर्व-क्षेम-समर्थे, भो: !
भक्तया समर्पितं देवि, महालक्ष्‍मी !  नमोsस्‍तुते ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै पाद्यं नम: 
अर्घ्‍य: अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी को अर्घ्‍य दें.

नमस्‍ते देव-देवेशि ! नमस्‍ते कमल-धारिणि !
नमस्‍ते श्री महालक्ष्‍मी, धनदा देवी ! अर्घ्‍यं गृहाण ।
गंध-पुष्‍पाक्षतैर्युक्‍तं, फल-द्रव्‍य-समन्वितम् ।
गृहाण तोयमर्घ्‍यर्थं, परमेश्‍वरि वत्‍सले !
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अर्घ्‍यं स्‍वाहा ।।
स्‍नान: अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को जल से स्‍नान कराएं. फिर  दूध, दही, घी, शहद और चीनी के मिश्रण यानी कि पंचामृत से स्‍नान कराएं. आखिर में शुद्ध जल से स्‍नान कराएं.

गंगासरस्‍वतीरेवापयोष्‍णीनर्मदाजलै: ।
स्‍नापितासी मय देवी तथा शांतिं कुरुष्‍व मे ।।   
आदित्‍यवर्णे तपसोsधिजातो वनस्‍पतिस्‍तव वृक्षोsथ बिल्‍व: ।
तस्‍य फलानि तपसा नुदन्‍तु मायान्‍तरायश्र्च ब्रह्मा अलक्ष्‍मी: ।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै जलस्‍नानं समर्पयामि ।।
वस्‍त्र: अब मां लक्ष्‍मी को मोली के रूप में वस्‍त्र अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें.

दिव्‍याम्‍बरं नूतनं हि क्षौमं त्‍वतिमनोहरम्  ।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ।।
उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतो सुराष्‍ट्रेsस्मिन् कीर्तिमृद्धि ददातु मे । 
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै वस्‍त्रं समर्पयामि ।।
आभूषण: अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी को आभूषण चढ़ाएं.

रत्‍नकंकड़ वैदूर्यमुक्‍ताहारयुतानि च ।
सुप्रसन्‍नेन मनसा दत्तानि स्‍वीकुरुष्‍व मे ।।
क्षुप्तिपपासामालां ज्‍येष्‍ठामलक्ष्‍मीं नाशयाम्‍यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वात्रिर्णद मे ग्रहात् ।।   
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै आभूषणानि समर्पयामि ।।
सिंदूर: अब मां लक्ष्‍मी को सिंदूर चढ़ाएं.

ॐ सिन्‍दुरम् रक्‍तवर्णश्च सिन्‍दूरतिलकाप्रिये ।
भक्‍त्या दत्तं मया देवि सिन्‍दुरम् प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै सिन्‍दूरम् सर्पयामि ।।
कुमकुम: अब कुमकुम समर्पित करें.

ॐ कुमकुम कामदं दिव्‍यं कुमकुम कामरूपिणम् ।
अखंडकामसौभाग्‍यं कुमकुम प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै कुमकुम सर्पयामि ।।
अक्षत: अब अक्षत चढ़ाएं.

अक्षताश्च सुरश्रेष्‍ठं कुंकमाक्‍ता: सुशोभिता: ।
मया निवेदिता भक्‍तया पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ।। 
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अक्षतान् सर्पयामि ।।
गंध: अब मां लक्ष्‍मी को चंदन समर्पित करें.

श्री खंड चंदन दिव्‍यं, गंधाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं महालक्ष्‍मी चंदनं प्रति गृह्यताम् ।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै चंदनं सर्पयामि ।।
पुष्‍प: अब पुष्‍प समर्पिम करें. 

यथाप्राप्‍तऋतुपुष्‍पै:, विल्‍वतुलसीदलैश्च ।
पूजयामि महालक्ष्‍मी प्रसीद मे सुरेश्वरि ।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै पुष्‍पं सर्पयामि ।।
अंग पूजन: अब हर एक मंत्र का उच्‍चारण करते हुए बाएं हाथ में फूल, चावल और चंदन लेकर दाहिने हाथ से मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा के आगे रखें.

ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि ।
ॐ चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि । 
ॐ कमलायै नम: कटिं पूजयामि ।
ॐ कात्‍यायन्‍यै नम: नाभि  पूजयामि ।
ॐ जगन्‍मात्रै नम: जठरं पूजयामि ।
ॐ विश्‍व-वल्‍लभायै नम: वक्ष-स्‍थलं पूजयामि ।
ॐ कमल-वासिन्‍यै नम: हस्‍तौ पूजयामि ।
ॐ कमल-पत्राक्ष्‍यै नम: नेत्र-त्रयं पूजयामि ।
ॐ श्रियै नम: शिर पूजयामि ।
- अब मां लक्ष्‍मी को धूप, दीपक और नैवेद्य (मिष्‍ठान) समपर्ति करें. फिर उन्‍हें पानी देकर आचमन कराएं. 

-इसके बाद ताम्‍बूल अर्पित करें और दक्षिणा दें. 
- फिर अब मां लक्ष्‍मी की बाएं से दाएं प्रदक्षिणा करें. 
- अब मां लक्ष्‍मी को साष्‍टांग प्रणाम कर उनसे पूजा के दौरान हुई ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए माफी मांगे. 
- इसके बाद मां लक्ष्‍मी की आरती उतारें
मां लक्ष्‍मी की आरती

मां लक्ष्‍मी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥
उमा, रमा, ब्रम्हाणी,

तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
दुर्गा रूप निरंजनि,

सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
तुम ही पाताल निवासनी,

तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,
भव निधि की त्राता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
जिस घर तुम रहती हो,

ताँहि में हैं सद्‍गुण आता ।
सब सभंव हो जाता,
मन नहीं घबराता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
तुम बिन यज्ञ ना होता,

वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव,
सब तुमसे आता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर,

क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
महालक्ष्मी जी की आरती,

जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता,
पाप उतर जाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥

टिप्पणियां
ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥
आप सभी को दीवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं !!!

दीवाली 2019 की तिथि और शुभ मुहूर्त

हिन्‍दू पंचांग के अनुसार दीवाली या दीपावली कार्तिक मास के कृष्‍ण पक्ष की अमावस्‍या को मनाई जाती है.
Diwali
 इस बार दीवाली 27 अक्‍टूबर 2019 को है. दीवाली की तिथि और शुभ मुहूर्त
दीवाली / लक्ष्‍मी पूजन की तिथि:
27 अक्‍टूबर 2019
अमावस्‍या तिथि प्रारंभ: 27 अक्‍टूबर 2019 को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से
अमावस्‍या तिथि समाप्‍त: 28 अक्‍टूबर 2019 को सुबह 09 बजकर 08 मिनट तक
लक्ष्‍मी पूजा मुहुर्त: 27 अक्‍टूबर 2019 को शाम 06 बजकर 42 मिनट से रात 08 बजकर 12 मिनट तक
कुल अवधि: 01 घंटे 30 मिनट

दीपावली पर धन प्राप्ति के अचूक उपाय




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  • दिवाली पर घर से गरीबी और दरिद्रता हटानी हो तो सरसों के तेल का दिया जलाएं। दीपावली की रात सरसों के तेल का दीपक अवश्य जलाएं। इस उपाय से आपको अवश्य लाभ मिलेगा। आपको बतां दें कि सरसों के तेल से दरिद्रता भागती है।
  • अपना खुद का घर खरीदने के लिए दीपावली के दिन अचूट टोटका अपना सकते हैं। दिवाली के दिन आप किसी भूखे को भोजन करा दें। वहीं दूसरा टोटका भी है कि आप गाय को गुड़ खिलाएं। शुक्रवार को भूखे व्यक्ति को भोजन कराएं औप रविवार को गाय को गुड़ खिलाएं। इस उपाय से अवश्य ही आपको घर संपत्ति की प्राप्ति का सपना पूरा होगा।
  • दीपावली की रात मां लक्ष्मी की पूजा करें। दिवाली रात को ही रात 11 से एक बजे के बीच मां लक्ष्मी के महामंत्र "ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नम:"का जाप करें। जाप के लिए कमलगट्टे या स्फटिक की माला जपें। इस उपाय को करने से घर में कभी गरीबी नहीं आती है और लक्ष्मी का वास होता।
  • दीवाली पर लक्ष्मी पूजन करते हुए पूजा सामग्री में इत्र और केसर भी रखें। महालक्ष्मी की पूजा के बाद देवी को ये दोनों चीजें चढ़ाएं। अब हर दिन घर से निकलने से पहले इस केसर का तिलक लगा लें।
  • दीपावली के दिन प्रातः काल मां लक्ष्मी के मंदिर जाकर लक्ष्मी जी को पोशाक चढ़ाएं, खुशबुदार गुलाब की अगरबत्ती जलाएं, धन प्राप्ति का मार्ग खुलेगा।
  • दीपावली के दिन प्रातः गन्ना लाकर रात्रि में लक्ष्मी पूजन के साथ गन्ने की भी पूजा करने से आपकी धन संपत्ति में वृद्धि होगी।
  • दीपावली की रात पूजन के पश्चात् नौ गोमती चक्र तिजोरी में स्थापित करने से वर्षभर समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है।
  • अगर घर में धन नहीं रूकता तो नरक चतुर्दशी के दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ लाल चंदन, गुलाब के फूल व रोली लाल कपड़े में बांधकर पूजें और फिर उसे अपनी तिजोरी में रखें, धन घर में रूकेगा और बरकत होगी।
  • दीपावली से आरंभ करते हुए प्रत्येक अमावस्या की शाम किसी अपंग भिखारी या विकलांग व्यक्ति को भोजन कराएं तो सुख, समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • काफी प्रयास के बाद भी नौकरी न मिलने पर दीपावली की शाम लक्ष्मी पूजन के समय थोड़ी सी चने की दाल लक्ष्मीजी पर छिड़क कर पूजा समाप्ति के पश्चात इकट्ठी करके पीपल के पेड़ पर समर्पित कर दें।
  • दुकानदार, व्यवसायी दीपावली की रात्रि को साबुत फिटकरी का टुकड़ा लेकर उसे दुकान में चारों तरफ घुमाएं और किसी चैराहे पर आकर उसे उत्तर दिशा की तरफ फेंक दें। ऐसा करने से ज्यादा ग्राहक आएंगे और धन लाभ में वृद्धि होगी।
  • दीपावली की रात पांच साबुत सुपारी, काली हल्दी, पांच कौड़ी लेकर गंगाजल से धोकर लाल कपड़े में बांधकर दीपावली पूजन के समय चांदी की कटोरी या थाली में रखकर पूजा करें, अगले दिन सवेरे अपनी तिजोरी में रखें। मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। पाठकगण दीपावली की रात्रि में उपाय करके देखें, मां लक्ष्मी की कृपा अवश्य होगी।
  • यदि आप मां लक्ष्मी देवी की कृपा सदैव अपने घर पर बनाना चाहते हैं तो इस टोटके का इस्तेमाल करें. इसके लिए आप दिवाली वाले दिन मां लक्ष्मी देवी की पूजा करते समय एक पीतल या तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें थोड़ी सी हल्दी घोल दे और उसको पूजा स्थान पर रखें. पूजा समाप्त होने के बाद उस जल को एक पीले फूल से सारे घर में छिड़क दें और जो जल बच जाएगा उसे एक तुलसी के पौधे में या केले के पौधे में डाल दें. ऐसा करने से मां लक्ष्मी देवी की कृपा आप पर सदैव बनी रहेगी.
  • दिवाली पर महालक्ष्मी के पूजन में पीली कौड़ियां रखें। इससे धन संबंधी सभी परेशानी दूर होगी।
  • लक्ष्मी पूजन में हल्दी की गांठ जरूरी रखें और पूजा के बाद इसे अपने तिजोरी में रखें।
  • लक्ष्मी पूजन के वक्त कुछ पुराने सिक्के ले चांदी के | इन्हें अन्य सिक्कों और कौड़ियों के साथ पूजन में रखकर हल्दी और केसर से पूजा करे | फिर इन्हें अपने गल्ले या तिजोरी पर रख दें | कभी भी धन की कमी नहीं रहेगी |
  • दिवाली वाले दिन लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाना चाहिए। इससे घर की सारी निगेटिविटी दूर हो जाएगी।
  • दिवाली अमावस्या के दिन पड़ती है। इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ में जल जरूर दें। इससे शनि के दोष और कालसर्प दोष खत्म हो जाता है। साथ ही देर रात पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। ध्यान रखें दीपक लगाकर चुपचाप अपने घर लौट आएं, पलटकर न देखें।
  • दीपावली की रात लक्ष्मी पूजा करते समय एक थोड़ा बड़ा घी का दीपक जलाएं, जिसमें नौ बत्तियां लगाई जा सके। सभी 9 बत्तियां जलाएं और लक्ष्मी पूजा करें।
  • प्रथम पूज्य श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें। दूर्वा की 21 गांठ गणेशजी को चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। दीपावली के शुभ दिन यह उपाय करने से गणेशजी के साथ महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।
  • दीपावली के दिन होने वाली लक्ष्मी पूजन में पीली कौड़िया रखें। पीली कौड़ियों को रखने से धन की देवी मां लक्ष्मी बहुत ही जल्द प्रसन्न होती है।
  • ब्रह्म मुहूर्त में लक्ष्मीजी के मंदिर में जाकर पूजन-अर्चन कर, गुलाब का इत्र, गुलाब की अगरबत्ती, कमल पुष्प, लाल गुलाबी वस्त्र तथा खीर का नैवेद्य लगाएं। माता लक्ष्मी की कृपा वर्षभर बनी रहेगी।
  • लक्ष्मी पूजन में गन्ना, कमल पुष्प, कमल गट्टे, नागकेसर, आंवला, खीर का प्रयोग धन प्राप्ति के मार्ग प्रशस्त करता है।‘
  • लक्ष्मीीजी के चित्र पर कमल गट्टे की माला हमेशा चढ़ी रहने दें।
  • दिवाली पूजन मे हल्दी की गांठ, कमलगट्टे और सबूत धनिया रखे और पूजा के बाद अपनी तिजोरी मे पीले सूती कपडे मे बाँध कर रख दे
  • दिवाली पूजन मैं लक्ष्मी नारायण की एक साथ पूजा करने से माँ लक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती है
  • दीपावली पर सुबह-सुबह शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल अर्पित करें।
  • दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाना चाहिए। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता बाहर चली जाती है। मां लक्ष्मी घर में आती हैं।

Thursday, October 24, 2019

धनतेरस

मां लक्ष्मी के पूजन के पर्व दीपावली से दो दिन पहले पड़ने वाला धनतेरस का त्योहार देव वैद्य धनवंतरि और लक्ष्मी जी के खजांची माने जाने वाले कुबेर को याद करने का दिन है। दिवाली से पहले कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाये जाने वाले 'धनतेरस' को 'धनवंतरि त्रयोदशी' भी कहा जाता है और इस दिन सोने चांदी की कोई चीज खरीदने को अत्यंत शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी के साथ धनवंतरि और कुबेर की भी पूजा की जानी चाहिए क्योंकि कुबेर जहां धन का जोड़−घटाव रखने वाले हैं वहीं धनवंतरि ब्रह्मांड के सबसे बड़े वैद्य हैं। 


धनतेरस के दिन पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान धनतेरस पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती हैं। वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ ही चल रही होती है।
मान्यता है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान, अमृत का कलश लेकर धनवंतरी प्रकट हुए थे. इस कारण इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा I 
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, धनवंतरी के प्रकट होने के ठीक दो दिन बाद मां लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं. यही कारण है कि हर बार दिवाली से दो दिन पहले ही धनतेरस मनाया जाता हैIइस दिन स्वास्थ्य रक्षा के लिए धनवंतरी देव की उपासना की जाती है. इस दिन को कुबेर का दिन भी माना जाता है और धन संपन्नता के लिए कुबेर की पूजा की जाती हैI
धन्वंतरि आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं। इस दिन गणेश-लक्ष्मी को घर लाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन कोई किसी को उधार नहीं देता है। इसलिए सभी वस्तुएं नगद में खरीदकर लाई जाती हैं। इस दिन लक्ष्मी और कुबेर की पूजा के साथ-साथ यमराज की भी पूजा की जाती है। 
पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती, अपितु रात होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है। धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्व है। शास्त्रों में इस बारे में कहा गया है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर संभव न हो तो कोई बर्तन खरीदें। इसका यह कारण माना जाता है कि चांदी चंद्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है, वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है।
घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से प्रारंभ हो जाती है। इस दिन घरों को स्वच्छ कर, रंगोली बनाकर सांझ के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है। इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। धनतेरस को चांदी के बर्तन खरीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशालाएं, कुआं, बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए।
इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्यद्वार पर रखा जाता है। इस दीप को यमदीवा अर्थात यमराज का दीपक कहा जाता है। रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रुई की बत्ती बनाकर चार बत्तियां जलाती हैं। दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए। जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं।

Friday, October 18, 2019

श्री राम नाम की महिमा


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एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवजी से श्री हरि की आराधना के बारे में पूछा तो भगवान शिव ने उनको भगवान श्री विष्णु की श्रेष्ठ आराधना, नित्य-नैमित्तिक कृत्य तथा भगवत्भक्तों की पूजा का वर्णन किया। जिसे सुन कर पार्वती जी ने कहा - नाथ ! आपने उत्तम वैष्णव धर्म का भलीभाँति वर्णन किया। वास्तव में परमात्मा श्री विष्णु का स्वरूप गोपनीय से भी अत्यन्त गोपनीय है। सर्वदेव वन्दित महेश्वर ! मैं आपके प्रसाद से धन्य और कृतकृत्य हो गयी। अब मैं भी सनातन देव श्री हरि का पूजन करूँगी।
श्री महादेव जी बोले - देवी ! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा ! तुम सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी भगवान लक्ष्मीपति का पूजन अवश्य करो। भद्रे ! मैं तुम-जैसी वैष्णवी पत्नी को पाकर अपने को कृतकृत्य मानता हूँ।
वसिष्ठजी कहते है - तदनन्तर महादेव जी से उपदेशानुसार पार्वती जी प्रतिदिन श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने के पश्चात भोजन करने लगीं। एक दिन परम मनोहर कैलास शिखर पर भगवान श्री विष्णु की आराधना करके भगवान शंकर ने पार्वतीदेवी को अपने साथ भोजन करने के लिये बुलाया। तब पार्वति देवी ने कहा - "प्रभो ! मैं श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने के पश्चात भोजन करूँगी, तब तक आप भोजन कर लें" यह सुन कर महादेव जी ने हँसते हुए कहा - "पार्वती ! तुम धन्य हो, पुण्यात्मा हो ; क्योकि भगवान श्रीविष्णु में तुम्हारी भक्ति है। देवि ! भाग्य के बिना भगवान श्रीविष्णु की भक्ति प्राप्त होना बहुत कठिन है। सुमुखि ! मैं तो "राम ! राम ! राम !" इस प्रकार जप करते हुये परम मनोहर श्रीराम नाम में ही निरन्तर रमण किया करता हूँ । राम-नाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान है। पार्वती ! रकारादि जितने नाम हैं, उन्हें सुनकर रामनाम ही आशंका से मेरा मन प्रसन्न हो जाता है।

श्रीराम राम रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्त्रनाम ततुल्यं रामनाम वरानने ॥
रकारादीनि नामानि श्रृण्वतो म्म पार्वति । मनः प्रसप्रतां याति रामनामाभिशंकया ॥ (२८१ । २१-२२)
अतः महादेवि ! तुम राम-नाम का उच्चारण करके इस समय मेरे साथ भोजन करों ।" यह सुन कर पार्वती जी ने राम-नाम का उच्चारण करके भगवान शंकर के साथ बैठकर भोजन किया। इसके बाद उन्होने प्रसन्नचित होकर पूछा - ‘ देवेश्वर ! आपने राम-नाम को सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के तुल्य बतलाया है यह सुन कर राम-नाम में मेरी बडी भक्ति हो गयी हैं अतः भगवान श्री राम के यदि और भी नाम हों तो बताइयें।’
श्री महादेव जी बोले - "पार्वती ! सुनो, मैं श्रीरामचन्द्र जी के नामों का वर्णन करता हूँ। लौकिक और वैदिक जितने भी शब्द हैं, वे सब श्रीरामचन्द्रजी के ही नाम हैं। किन्तु सहस्त्रनाम उन सबमें अधिक है और उन सहस्त्रनामों में भी श्रीराम के एक सौ आठ नामों की प्रधानता अधिक है। श्रीविष्णु का एक-एक नाम ही सब वेदों से अधिक माना गया है। वैसे ही एक हजार नामों के समान अकेला श्रीराम-नाम माना गया है। पार्वती ! जो सम्पूर्ण मन्त्रों और समस्त वेदों का जप करता है, उसकी अपेक्षा कोटिगुना पुण्य केवल राम-नाम से उपलब्ध होता है।" 

Wednesday, October 16, 2019

Karwa Chauth 2019 - जानिए आपके शहर में कितने बजे निकलेगा करवा चौथ का चांद

करवा चौथ के दिन चांद निकलने का समय



1. दिल्‍ली 
- New Delhi Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- नई दिल्‍ली 
चांद निकलने का समय- 8: 20 PM

2. उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड 
- Noida/Greater Noida Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- नोएडा/ग्रेटर नोएडा
चांद निकलने का समय- 8: 15 PM

- Lucknow Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- लखनऊ 
चांद निकलने का समय- 8:08 PM

- Varanasi Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- वाराणसी
चांद निकलने का समय- 7:58 PM

- Kanpur Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- कानपुर
चांद निकलने का समय- 8: 09 PM

- Gorakhpur Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- गोरखपुर
चांद निकलने का समय- 8: 09 PM

- Prayagraj Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- प्रयागरारज
चांद निकलने का समय- 8: 03 PM

- Bareilly Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- बरेली
चांद निकलने का समय- 8:08 PM

- Meerut Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- मेरठ 
चांद निकलने का समय- 8:14 PM

- Agra Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- आगरा
चांद निकलने का समय- 8: 16 PM

- Bahraich Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- बहराइच 
चांद निकलने का समय- 8: 00 PM

- Faizabad Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- फैजाबाद
चांद निकलने का समय- 7: 59 PM

- Jhansi Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- झांसी
चांद निकलने का समय- 8: 18 PM

- Dehradun Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- देहरादून
चांद निकलने का समय- 8:10 PM

3. पंजाब/ हरियाणा/चंडीगढ़ 
- Chandigarh Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- चंडीगढ़ 
चांद निकलने का समय- 8:14 PM

Amritsar Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- अमृतसर 
चांद निकलने का समय- 8:20 PM

- Ambala Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- अंबाला
चांद निकलने का समय- 7:46 PM

- Bathinda Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान: भटिंडा
चांद निकलने का समय- 8:23 PM

- Gurugram Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान - गुरुग्राम
चांद निकलने का समय- 8:21 PM

4. बिहार/झारखंड
- Patna Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- पटना 
चांद निकलने का समय- 7:49 PM

- Gaya Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- गया
चांद निकलने का समय- 7: 21 PM

- Muzaffarpur Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- मुजफ्फरपुर
चांद निकलने का समय- 7: 47 PM

- Bhagalpur Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- भागलपुर
चांद निकलने का समय- 7: 42 PM

- Ranchi Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- रांची
चांद निकलने का समय- 7:52 PM

5. जम्‍मू-कश्‍मीर/ हिमाचल प्रदेश
- Jammu Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- जम्‍मू 
चांद निकलने का समय- 08:18 PM

- Shimla Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- शिमला
चांद निकलने का समय- 08:12PM

6. मध्‍य प्रदेश/ छत्तीसगढ़ 
- Bhopal Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- भोपाल 
चांद निकलने का समय- 8:25PM

- Indore Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- इंदौर
चांद निकलने का समय- 8:32 PM 

- Jabalpur Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- जबलपुर
चांद निकलने का समय- 8: 14 PM

- Raipur Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- रायपुर
चांद निकलने का समय: 8: 11 PM

7. राजस्‍थान 
- Jaipur Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- जयपुर 
चांद निकलने का समय- 8:29 PM

- Jodhpur Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- जोधपुर
चांद निकलने का समय- 8:38 PM

- Sri Ganganagar Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- श्री गंगानगर
चांद निकलने का समय- 8:28 PM 

- Ajmer Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- अजमेर
चांद निकलने का समय- 8: 31 PM

- Kota Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- कोटा
चांद निकलने का समय- 8: 28 PM

- Alwar Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- अलवर
चांद निकलने का समय- 8: 21 PM

- Bundi Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- बूंदी
चांद निकलने का समय: 8: 27 PM

- Bikaner Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- बीकानेर
चांद निकलने का समय- 8: 33 PM

8. महाराष्‍ट्र 
- Mumbai Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- मुंबई 
चांद निकलने का समय- 8:54 PM

- Pune Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- पुणे 
चांद निकलने का समय- 8:47 PM

9. गुजरात 
- Ahmedabad Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- अहमदाबाद 
चांद निकलने का समय- 8:45 PM

- Gandhi Nagar Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- गांधीनगर 
चांद निकलने का समय- 8:44 PM

- Rajkot Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- राजकोट
चांद निकलने का समय- 8: 54 PM

- Surat Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- सूरत
चांद निकलने का समय- 8: 47 PM

10. ओडिशा 
- Bhubaneshwar Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- भुवनेश्‍वर
चांद निकलने का समय- 7: 55 PM

11. पश्चिम बंगाल/नॉर्थ ईस्‍ट 
- Kolkata Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- कोलकाता
चांद निकलने का समय- 07:45 PM

- Darjeeling Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- दार्जिलिंग
चांद निकलने का समय- 7: 34 PM

- Guwahati Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- गुवाहाटी 
चांद निकलने का समय- 07:21 PM

12. दक्षिण भारत
- Bengaluru Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- बंगलुरु 
चांद निकलने का समय- 8:44 PM

- Chennai Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- चेन्‍नई 
चांद निकलने का समय- 8:32 PM

- Hyderabad Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्थान- हैदराबाद 
चांद निकलने का समय- 8:33 PM

- Coimbatore Karwa Chauth 2019 Moon Rise Time
स्‍थान- कोयंबटूर
चांद निकलने का समय- 8: 45 PM

Monday, October 14, 2019

करवा चौथ पर्व तिथि व मुहूर्त 2019

भारत में हिंदू धर्मग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों और शास्त्रादि के अनुसार हर महीने कोई न कोई उपवास, कोई न कोई पर्व, त्यौहार या संस्कार आदि आता ही है लेकिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो उपवास किया जाता है उसका सुहागिन स्त्रियों के लिये बहुत अधिक महत्व होता है। दरअसल इस दिन को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है। हालांकि पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूम-धाम से इस त्यौहार को मनाते हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस दिन अलग ही नजारा होता है। करवाचौथ व्रत के दिन एक और जहां दिन में कथाओं का दौर चलता है तो दूसरी और दिन ढलते ही विवाहिताओं की नज़रें चांद के दिदार के लिये बेताब हो जाती हैं। चांद निकलने पर घरों की छतों का नजारा भी देखने लायक होता है। दरअसल सारा दिन पति की लंबी उम्र के लिये उपवास रखने के बाद आसमान के चमकते चांद का दिदार कर अपने चांद के हाथों से निवाला खाकर अपना उपवास खोलती हैं। करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही 4 बजे के बाद शुरु हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत को खोला जाता है। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है।


करवा चौथ की कथा...


पुराने समय में इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का लीलावती था। उसके सात पुत्र और वीरावती नामक एक पुत्री थी। युवा होने पर वीरावती का विवाह करा दिया गया। इसके बाद जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख-प्यास से वह चंद्रोदय के पूर्व ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई परेशान हो गए।
सभी भाइयों ने बहन के लिए पेड़ के पीछे से जलती मशाल का उजाला दिखाकर बहन को होश में लाकर चंद्रोदय निकलने की सूचना दी। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधिपूर्वक अर्घ्य दिया और भोजन कर लिया। ऐसा करने से कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई।
अपने पति के मृत्यु के बाद वीरावती ने दुखी होकर अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी रात को इंद्राणी पृथ्वी पर आई। ब्राह्मण पुत्री ने उनसे अपने दुख का कारण पूछा। इंद्राणी ने बताया कि तुमने अपने पिता के घर पर करवा चौथ का व्रत किया था, लेकिन वास्तविक चंद्रोदय के होने से पहले ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया, इसीलिए तुम्हारा पति मर गया।
अब उसे पुनर्जीवित करने के लिए विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत करो। मैं उस व्रत के ही पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी।
वीरावती ने बारह मास की चौथ सहित करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधानानुसार किया। इससे प्रसन्न होकर इंद्राणी ने उसके पति को जीवनदान दिया। इसके बाद उनका वैवाहिक जीवन सुखी हो गया। वीरावती को पुत्र, धन, धान्य और पति की दीर्घायु का लाभ मिला।


करवा चौथ पर्व तिथि व मुहूर्त 2019

करवा चौथ 2019


17 अक्तूबर


करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:46 से 19:02


चंद्रोदय- 20:20


चतुर्थी तिथि आरंभ- 06:48 (17 अक्तूबर)


चतुर्थी तिथि समाप्त- 07:28 (18 अक्तूबर)

कार्तिक का महीना, पूरे महीने करें ये काम!!!

हिन्दू कैलेंडर के नए मास कार्तिक का प्रारंभ 14 अक्टूबर दिन सोमवार से हो रहा है। पुराणादि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व बताया गया है। भगवान विष्णु एवं विष्णु तीर्थ के सदृश ही कार्तिक मास को श्रेष्ठ और दुर्लभ कहा गया है। कार्तिक मास कल्याणकारी मास माना जाता है। कार्तिक मास का माहात्म्य पद्मपुराण तथा स्कन्दपुराण में बहुत विस्तार से उपलब्ध है।


कार्तिक मास में महिलाएं ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर राधा-दामोदर की पूजा करती हैं। कलियुग में कार्तिक मास-व्रत को मोक्ष के साधन के रूप में दर्शाया गया है। पुराणों के मतानुसार, इस मास को चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। स्वयं नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुणसम्पन्न माहात्म्य के सन्दर्भ में बताया है।


1. कार्तिक मास को रोगापह अर्थात् रोगविनाशक कहा गया है। सद्बुद्धि प्रदान करने वाला, लक्ष्मी का साधक तथा मुक्ति प्राप्त कराने में सहायक बताया गया है।


2. कार्तिक मास में दीपदान करने का विधान है। हम इस माह में आकाशदीप भी जलाते हैं।


3. कार्तिक मास में तुलसी आराधना का विशेष महत्व है। एक ओर आयुर्वेद में तुलसी को रोगहर कहा गया है, वहीं दूसरी ओर यह यमदूतों के भय से मुक्ति प्रदान करती है।


4. कार्तिक मास में तुलसी की वेदी के पास कार्तिक महात्म्य सुनने से परिवार में सुख शांति रहती है।


5. तुलसी दल या मञ्जरी से भगवान का पूजन करने से अनन्त लाभ मिलता है, कार्तिक व्रत में तुलसी-आरोपण का विशेष महत्व है। भगवती तुलसी विष्णुप्रिया कहलाती हैं।


6. कार्तिक मास में हरि संकीर्तन मुख्य रूप से किया जाता है।


7. कार्तिक मास में नित्य स्नान करें और हविष्य ( जौ, गेहूँ, मूँग, तथा दूध-दही और घी आदि) का एकबार भोजन करें, तो सब पाप दूर हो जाते हैं।


भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र में मिला नोबेल पुरस्कार, वैश्विक गरीबी को कम करने में योगदान


भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनके साथ ही एस्थर डुफलो और माइकल क्रेमर को भी सम्मानित किया गया है। तीनों अर्थशास्त्रियों को 'वैश्विक गरीबी खत्म करने के प्रयोग' के उनके शोध के लिए सम्मानित किया गया है। इकनॉमिक साइंसेज कैटिगरी के तहत यह सम्मान पाने वाले अभिजीत बनर्जी भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक हैं।




अभिजीत बनर्जी अर्थशास्‍त्र का नोबेल पाने वाले दूसरे भारतीय इकोनॉमिस्‍ट हैं. इससे पहले अमर्त्‍य सेन को अर्थशास्‍त्र के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए इस पुरस्‍कार से नवाजा जा चुका है. अभिजीत बनर्जी ने कोलकाता के प्रेजीडेंसी कॉलेज और उसके बाद दिल्‍ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण की है.





काली घाट की माँ काली

कालीघाट काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।मान्यता है कि यहां मां काली जाग्रत अवस्था में है


कालीघाट काली मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के कालीघाट में स्थित देवी काली का प्रसिद्ध मंदिर है। कोलकाता में भगवती के अनेक प्रख्यान स्थल हैं। परंपरागत रूप से हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, जहाँ सती के दाएँ पाँव की 4 उँगलियों (अँगूठा छोड़कर) का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति 'कालिका' व भैरव 'नकुलेश' हैं। इस पीठ में काली की भव्य प्रतिमा मौजूद है, जिनकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है। मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं। पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है।



माँ काली के विषय में कुछ मुख्य बातें –

नाम : माता कालिका
शास्त्र : त्रिशूल और तलवार
दिन : अमावस्या
वार : शुक्रवार
ग्रंथ : कालिका पुराण
मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्लीम परमेश्वरी कालिके स्वाहा
चार रूप : दक्षिणा काली, शमशान काली, मात्र काली और महाकाली काली



कई लोगों का मानना है कि कोलकाता में मां काली खुद निवास करती हैं और उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम कोलकाता पड़ा। ग्रंथों में दिए गए वर्णन के अनुसार, कोलकाता के प्रसिद्ध मंदिर दक्षिणेश्वर से लेकर बाहुलापुर (वर्तमान में बेहाला) तक की भूमि तीर-कमान के आकार की है।




कई विविधताओं को सहेज इस कोलकाता शहर के उत्पत्ति व नामकरण को ही मां काली का आशीर्वाद प्राप्त है। शक्ति के उपासकों की आस्था से लबरेज कोलकाता के जनजीवन पर माता काली की छत्रछाया को सहज ही महसूस किया जा सकता है। देश के 52 शक्तिपीठों में कालीघाट की मां काली अन्यतम हैं। ऐसी मान्यता है कि कालीघाट में मां सती के दाहिने पांव की चार अंगुलियां गिरी थीं। पुराणों में काली को शक्ति का रौद्रावतार माना जाता है और प्रतिमा या तस्वीरों में देवी को विकराल काले रूप में गले में मुंडमाला और कमर में कटे हाथों का घाघरा पहने, एक हाथ में रक्त से सना खड्ग और दूसरे में खप्पर धारण किए, लेटे हुए भगवान शंकर पर खड़ी जीह्वा निकाले दर्शाया जाता है। लेकिन, कालीघाट मंदिर में देवी की प्रतिमा में मां काली का मस्तक और चार हाथ नजर आते हैं। यह प्रतिमा एक चौकोर काले पत्थर को तरास कर तैयार की गई है। यहां लाल वस्त्र से ढकी मां काली की जीभ काफी लंबी है जो सोने की बनी हुई है और बाहर निकली हुई है। दांत सोने के हैं। आंखें तथा सिर गेरूआ सिंदूर के रंग से बना है और माथे पर तिलक भी गेरूआ सिंदूर का है। प्रतिमा के हाथ स्वर्ण आभूषणों और गला लाल पुष्प की माला से सुसज्जित है। श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ सिंदूर का चोला दिया जाता है।

सदियों पूराना है कालीघाट के काली मंदिर का इतिहास


15वीं सदी से 18वीं सदी तक की बांग्ला किताबों और सरकारी दस्तावेजों में इस काली मंदिर का जिक्र है। 1742 में अंग्रेेजों द्वारा बनवाए गए गाइड-मैप में कालीघाट मार्ग दर्शाया गया है। वर्तमान मंदिर करीब 200 वर्ष पुराना है।


ऐसे हुआ मंदिर का निर्माण 


किंवदंती के मुताबिक बरीशा गांव के जमींदार शिवदेव राय चौधरी ने सन् 1809 में इस मंदिर का निर्माण शुरू किया और उनके पुत्र रामलाल व भतीजे लक्ष्मीकांत ने इसे पूरा किया। कहा जाता है कि भागीरथी नदी जिसे (अब आदि गंगा कहते हैं) के किनारे एक तेज प्रकाश-पुंज नजर आया था। प्रकाश-पुंज को खोजने पर काले पत्थर का टुकड़ा मिला, जिस पर दाहिने पैर की अंगुलियां अंकित थीं। उस चमत्कारी शिलाखंड की देवी रूप में उपासना की जाने लगी। इस आठचाला मंदिर में पक्की माटी का काम काल के थपेड़ों ने नष्ट कर दिया है। बाद में संतोष राय ने इसका जीर्णोद्धार कराया। 1971 में मंदिर का वर्तमान प्रवेश द्वार व तोरण का निर्माण बिड़ला ने कराया था। 


काली मां के साथ और भी देवी-देवताओं की है प्रतिमा 


काली मंदिर के सामने नकुलेश्वर भैरव मंदिर है, जो 1805 में बना था। यहां स्थापित स्वयंभूलिंगम भी काली की प्रतिमा के पास ही नदी किनारे मिला था। मां काली के अलावा शीतला, षष्ठी और मंगलाचंडी के भी स्थान है। वर्तमान में स्थित मंदिर के समीप ही एक जलाशय है जहां मां सती के अंग गिरे थे। आज भी वह जलाशय मौजूद है। यहां मौजूद बरगद का वृक्ष भी प्राचीन है। इसे संरक्षित रखा गया है। इस जलाशय में स्नान करने से पुण्य मिलता है। अत: इस तालाब में स्नान करने के लिए भी श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती है।


सच्चे मन से मांगी मुरादें होती हैं पूरी


मंदिर के पुजारी का कहना है कि यह मंदिर कोलकाता से भी प्राचीन है। यहां विराजमान देवी में बड़ी जाग्र्रत हैं। यहां आने वाले हर भक्त की सच्ची मनोकामना पूरी होती है। यहां देशभर से श्रद्धालु तो आते ही हैं, विदेशों से भी लोग देवी का दर्शन-पूजन करने आते हैं। सच्चे मन से पूजा करने वालों की मां मनोकामना पूरी करती हैं।


कुछ अनोखी परंपरा 


पुजारी ने इस मंदिर की कुछ खास बातें बताई। उन्होंने बताया कि बंगाल में काली पूजा के दिन जहां घरों एवं मंडपों में देवी काली की आराधना होती है, वहीं इस शक्तिपीठ में लक्ष्मीस्वरूपा देवी की विशेष पूजा-अर्चना होती है। दुर्गापूजा के दौरान षष्ठी से दशमी तक मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। दुर्गोत्सव में दशमी को सिंदूर खेला के लिए इस कालीमंदिर में दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक सिर्फ महिलाएं प्रवेश करती हैं। इस दौरान पुरुषों का प्रवेश वर्जित रहता है। यहां रोज मां काली के लिए 56 भोग लगाया जाता है।


कब जाएं


कोलकाला जाने के लिए नवरात्री का समय सबसे अच्छा माना जाता है, इस समय यहां पर बहुत धूम रहती है। इसके अलावा अक्टूबर से मार्च के बीच भी कोलकाता जाया जा सकता है।


दर्शन की समय सूची
मंगलवार और शनिवार के साथ अष्टमी को विशेष पूजा की जाती है और इस दिन भक्तों की भीड़ भी बहुत अधिक होती है। मंदिर प्रात : 4 बजे से रात्रि 11 तक खुला रहता है। दोपहर में मंदिर 2 से 4 बजे तक बंद कर दिया जाता है। इस अवधि में मां को भोग लगाया जाता है। सर्वप्रथम सुबह 4 बजे मंगल आरती होती है। श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर 5 बजे खोला जाता है। यहां नित्य पूजा सुबह 5.30 से 7 बजे तक, भोग दोपहर 2.30 से 3.30 बजे तथा संध्या आरती 6.30 से 7 बजे तक होती है।

Thursday, October 10, 2019

FY20 में 5.8% रहेगी भारत की GDP ग्रोथ - मूडीज

मूडीज इनवेस्टर सर्विस ने वित्त वर्ष 2019-20 में भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान पहले के 6.8 प्रतिशत से घटाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया है। उसका कहना है कि देश आज व्यापक सुस्ती का सामना कर रहा है। अब तक किसी भी प्राइवेट एजेंसी ने ग्रोथ के इतना कम रहने का अनुमान नहीं लगाया है। कुछ ही दिन पहले भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दर 0.25 प्रतिशत घटाते हुए वित्त वर्ष 2020 में 6.1 प्रतिशत ग्रोथ का अनुमान लगाया था। हालांकि, यह उसके पिछले 6.8 प्रतिशत के अनुमान से कम था।
2020-21 में ग्रोथ रेट में बढ़ोतरी
मूडीज ने कहा कि ग्रोथ रेट बाद में तेज होकर 2020-21 में 6.6 फीसदी और मध्यम अवधि में करीब 7 फीसदी हो जाएगी. उसने कहा, हम अगले दो साल जीडीपी की वास्तविक ग्रोथ और महंगाई में धीमे सुधार की उम्मीद करते हैं. हमने दोनों के लिये अपना पूर्वानुमान घटा दिया है. दो साल पहले की स्थिति से तुलना करें तो जीडीपी ग्रोथ रेट 8 फीसदी या इससे अधिक बने रहने की उम्मीद कम हो गई है.
कुछ अन्य वैश्विक संस्थानों ने भी हाल में भारत की जीडीपी ग्रोथ के अनुमान में कटौती की थी। एशियन डिवेलपमेंट बैंक ने वित्त वर्ष 2020 में ग्रोथ 6.5 प्रतिशत और ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट ने 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। इससे पहले जून तिमाही में भारत की ग्रोथ 5 प्रतिशत के साथ 6 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई थी। रिजर्व बैंक का कहना है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में यह 5.3 प्रतिशत रह सकती है। प्राइवेट कंजम्पशन एक्सपेंडिचर 3.1 प्रतिशत के साथ 18 तिमाहियों के निचले स्तर पर है। सरकार दूसरी तिमाही के जीडीपी ग्रोथ के अनुमान 29 नवंबर को जारी करेगी। मूडीज ने यह भी बताया कि अब जीडीपी ग्रोथ के 8 प्रतिशत से ऊपर लंबे समय तक बने रहने की संभावना भी घटी है। उसने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर कमजोर है। भारत के लैंड और लेबर लॉ सख्त हैं और वे निजी निवेश में बाधा बने हुए हैं। इसका खासतौर पर मैन्युफैक्चरिंग और एग्रीकल्चर प्रॉडक्टिविटी पर बुरा असर पड़ रहा है। मूडीज ने कहा है कि मार्च 2020 तक रिटेल इन्फ्लेशन 3.7 प्रतिशत के हाल के निचले स्तर से बढ़ेगी और मार्च 2021 तक यह 4.5 प्रतिशत तक जा सकती है।

पश्‍चिम बंगाल की दुर्गा पूजा

इस बात का जिक्र करना जरूरी नहीं कि कोलकाता में दुर्गा पूजा कितने धूम-धाम से मनाई जाती है। इस दौरान कोलकता के नजारे ही बदल जाते हैं। जगह-जगह दुर्गा मां के पंडाल सजे होते हैं तो दूसरी तरफ मेले लगे होते हैं। भक्ति, नाच-गाने और खाने-पीने के साथ ही कोलकाता में 10 दिन धूम-धाम से दुर्गा पूजा मनाई जाती है। 


दुर्गा पूजा खासतौर से बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, झारखंड और बिहार में धूमधाम से मनाई जाती है. इन राज्‍यों में शरद नवरात्रि में षष्‍ठी से लेकर दशमी तक दुर्गा उत्‍सव मनाया जाता है. यहां दुर्गा उत्‍सव को अकालबोधन , शदियो पूजो, शरदोत्‍सब, महा पूजो , मायेर पूजो, पूजा या फिर पूजो भी कहा जाता है. दुर्गा उत्‍सव के दौरान भव्‍य पंडाल बनाकर उनमें मां दुर्गा की प्रतिमा स्‍थापित की जाती है. इस दौरान मां की आराधना के अलावा अनेक रंगारंग और सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. 
दुर्गा उत्‍सव क्‍यों मनाया जाता है?
दुर्गा पूजा मनाए जाने के अलग-अलग कारण हैं. मान्‍यता है कि देवी दुर्गा ने महिशासुर नाम के राक्षस का वध किया था. बुराई पर अच्‍छाई के प्रतीक के रूप में नवदुर्गा की पूजा की जाती है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि साल के इन्‍हीं नौ महीनों में देवी मां अपने मायके आती हैं. ऐसे में इन नौ दिनों को दुर्गा उत्‍सव के रूप में मनाया जाता है. 

कैसे मनाया जाता है दुर्गा उत्‍सव का त्‍योहार?
दुर्गा पूजा की शुरुआत नवरात्रि से एक दिन पहले महालया से होती है. महलाया अमावस्‍या की सुबह सबसे पहले पितरों का तर्पण कर उन्‍हें विदाई दी जाती है. मान्‍यता है कि महालया के दिन शाम को मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्‍वी लोक आती हैं और पूरे नौ दिनों तक यहां रहकर धरतीवासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं. महालया के बाद वाले सप्‍ताह को देबी पॉक्ष (Debi-Poksha) कहा जाता है.

षष्‍ठी के दिन पंडालों में मां दुर्गा, सरस्‍वती, लक्ष्‍मी, कार्तिक, भगवान गणेश और महिषासुर की प्रतिमाओं को स्‍थापित किया जाता है. षष्‍ठी के दिन घर की महिलाएं खासकर मांएं अपने बच्‍चों की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं. सप्‍तमी के दिन देवी पंडालों की रौनक देखते ही बनती है. इस दिन मां दुर्गा को उनका पसंदीदा भोग लगाया जाता है जिसमें खिचड़ी, पापड़, सब्‍जियां, बैंगन भाजा और रसगुल्‍ला शामिल है. अष्‍टमी के दिन भी देवी मां की आराधना की जाती है और उन्‍हें कई तरह के पकवान चढ़ाए जाते हैं. नवमी की रात मायके में दुर्गा मां की आखिरी रात होती है.


इसके बाद दशमी यानी कि दशहरे के दिन सुबह सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां को विसर्जन कर विदाई दी जाती है. दुर्गा उत्‍सव के दौरान पंडाल परिसर में ही मंच बनाया जाता है जहां रंगारंग कार्यक्रम होत है. अपनी प्रतिभा दिखाने का यह अच्‍छा मौका होता है. इस दौरान खासकर बच्‍चों के लिए कई तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है.
दुर्गा पूजा की खास बातें 
पंडाल: दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल आकर्षण का केंद्र रहते हैं. न सिर्फ बंगाल में बल्‍कि भारत समेत दुनिया के अलग-अलग हिस्‍सों में देवी मां के भव्‍य पंडाल स्‍थापित किए जाते हैं. लोग अपने परिवार, रिश्‍तेदारों और दोस्‍तों के साथ एक पंडाल से दूसरे पंडाल (Pandal Hopping) जाते हैं. षष्‍ठी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा पंडालों में स्‍थापित की जाती है, जबकि सप्‍तमी को मां के पट भक्‍तों के लिए खोल दिए जाते हैं. इस दौरान एक से बढ़कर एक डिजाइन के पंडाल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. पंडालों के आसपास मेले भी लगते हैं, जिनमें खाने-पीने के ढेर सारे स्‍टॉल किसी के मुंह में भी पानी ला सकते हैं.



भोग: मान्‍यता के अनुसार मायके आईं मां दुर्गा को पूजा के दौरान कई तरह का भोग लगाया जाता है. पंडालों के अलावा लोग घरों में खजूर-गुड़ की खीर, मालपुआ और तरह-तरह की मिठाइयां बनाते हैं. 


धुनुची डांस: दुर्गा पूजा में धुनुची डांस न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. एक खास तरह के बर्तन को धुनुची कहा जाता है, जिसमें सूखे नारियल के छिलकों को जलाकर दुर्गा मां की आरती की जाती है. आरती के दौरान धुनुची के साथ भक्‍त झूमकर नाचते हैं और कई तरह के करतब भी करते हैं. 

ढाक: जब पंडालों में दुर्गा मां की आरती की जाती है तब ढाक बजाया जाता है. ढाक एक तरह का ढोल है जिसकी खास ध्‍वन‍ि पूरे माहौल को मां की भक्ति के रंग में रंग देती है. 

सिंदूर खेला बंगाल, असम और त्रिपुरा के लोग दुर्गा पूजा के दौरान खास तौर से लाल पाड़ की साड़ी पहनते हैं. लाल पाड़ की साड़ी एक खास तरह की सफेद साड़ी है जिसका बॉर्डर लाल रंग का होता है.

सिंदूर खेला: नवरात्रि के 10वें दि यानी कि विजयदशमी को पंडालों में महिलाएं मां दुर्गा की पूजा करने के बाद उन्‍हें सिंदूर चढ़ाती हैं. इस दौरान मां दुर्गा को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है. इसके बाद महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. इस परंपरा को सिंदूर खेला कहा जाता है. मान्‍यता है कि मां दुर्गा की मांग भरकर उन्‍हें मायके से ससुराल विदा किया जाना चाहिए. 

विसर्जन: सिंदूर खेला के बाद दुर्गा मां की प्रतिमा को विजसर्जन के लिए ले जाया जाता है. इस दौरान लोग नाचते-गाते हुए मां की प्रतिमा को पानी में विसर्ज‍ित कर देते हैं.

दुर्गा पूजा का उत्‍साह कोलकाता के लोगों में तभी से शुरू हो जाता है जब महीने भर पहले भूमि पूजन होता है। इसके बाद शुरू होता कोलकता की गली-गली में दुर्गा मां के पंडालों को सजाने की तैयारी। दिल्‍ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में भले ही गिने चुने दुर्गा पंडाल होते होंगे मगर कोलकाता में मां दुर्गा के हजारों पंडाल सजते हैं। इस दौरान कोलकाता बहुत कलरफुल हो जाता है। अगर आप कोलकाता घूमने आना चाहती हैं तो यह वक्‍त सबसे अच्‍छा है।’ 
कब कराएं रिजर्वेशन 
दुर्गा पूजा के दौरान कोलकाता आना है तो आपको 4 महीने पहले से रिजर्वेशन करा लेना चाहिए। क्‍योंकि इस दौरान कोलकाता आने वाली फ्लाइट्स बहुत महंगी हो जाती हैं और ट्रेन में भी आसानी से रिजर्वेशन नहीं मिलता। वर्षा बातती हैं, ‘यह समय कोलकाता में छुट्टियों का समय होता है। ज्‍यादतर लोग इस दौरान छुट्टियां मनाते हैं। इसलिए लोगों का आना जाना भी लगा रहता है। अगर आप कोलकाता आना चाहती हैं तो आपको 4 महीने पहले ही रिजर्वेशन करा लेना चाहिए।’
कोलकाता में कौन से दुर्गा पंडाल हैं फेमस 
कोलकाता में बागबाजार पंडाल सबसे पुराना है। यहां 100 सालों से दुर्गा पूजा का आयोजन हो रहा है। यहां दुर्गा माता की बेहद पारंपरिक अंदाज में पूजा की जाती है। अगर आप कोलकाता आ रही हैं तो इस पंडाल में एक बार जरूर आएं। इसके अलावा कॉलेज स्‍क्‍वायर में भी मां दुर्गा का पंडाल सजता है। यहां पंडाल में मां दुर्गा की भव्‍य मूर्ति लगाई जाती हैं और इसकी सेटिंग भी अलग अंदाज में होती है। यहां प्रतिमा देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां की सबसे अच्‍छी बात यह है कि पंडाल के आगे झील है और इस झील में मां की प्रतिमा की छवि भी दिखाई देती हैं। इसके अलावा यहां का सुरुचि संघ भी मां दुर्गा का बहुत खूबसूरत पंडाल सजाता है। यहां भारत के सभी राज्‍यों के विभिन्‍न्‍पहलुओं को दिखाया जाता है। 
पंचमी से शुरू होता है उत्‍सव 
कोलकाता में मां दुर्गा के पंडाल तो नवरात्री के पहले दिन से ही सज साजते हैं मगर असल उत्‍सव पंचमी से शुरू होता है। पंचमी के दिन तक सभी पंडालों में मां दुर्गा के फेस को सफेद कपड़े से कवर करके रखा जाता है। मगर, पंचमी के दिन हर पंडाल में मां का चेहरा खोल दिया जाता है। अगर आप केवल 3-4 दिन के लिए कोलकाता जा रही हैं तो आपको पंचमी के बाद ही जाना चाहिए। 
जरूर देखें सिंदूर खेला 
नवरात्री के आखिरी दिन मां दुर्गा की पूजा के बाद शादीशुदा महिलाएं एक दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं। इस प्रक्रिया को सिंदूर खेला कहते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि इस दिन मां दुर्गा अपने मायके से विदा होकर अपने ससुराल लौटती हैं। इस दौरान मां की मांग में सिंदूर भर कर महिलाएं उल्‍लू की ध्‍वनी निकालती हैं और मां को विदा करती हैं। सिंदूर खेला का उत्‍सव नवरात्री के 10वें दिन खेला जाता है। 
नोट : तो अगर आपने अब तक कोलकाता नहीं देखा तो आप भी नवरात्री के दौरान यहां की एक ट्रिप प्‍लान कर सकती है। ध्‍यान रखें अपना रिजर्वेशन और होटल की बुकिंग पहले से करा लें। क्‍योंकि इस दौरान कोलकाता पहुंचना और होटलों में रूम खाली मिलना दोनों ही मुश्किल काम हैं। 






कार्तिक मास 2021

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